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ज़ाकिर खान एक भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडियन, लेखक, कवि, प्रस्तुतकर्ता और अभिनेता हैं। 2012 में, उन्होंने कॉमेडी सेंट्रल की भारत की सर्वश्रेष्ठ स्टैंड अप कॉमेडियन प्रतियोगिता जीतकर लोकप्रियता हासिल की। वह AIB के साथ एक समाचार कॉमेडी शो, ऑन एयर का भी हिस्सा रहे हैं। उनकी लोकप्रिय कृतियाँ 'काकश ग्यारवी' और 'प्राइम से सिंगल' अमेज़न प्राइम पर हैं।
Zakir Khan Shayari in Hindi | Zakir Khan Quotes in Hindi
मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
लूट रहे थे खजाने मां बाप की छाव मे,
हम कुड़ियों के खातिर, घर छोड़ के आ गए।
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया ।
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उन्मे सें , कभी याद नहीं आया।
Zakir Khan Shayari in Hindi | Zakir Khan Quotes in Hindi
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
हर एक दस्तूर से बेवफाई मैंने शिद्दत से हैं निभाई
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे और मंजिल भी खुद बनाई।
मेरी अपनी और उसकी आरज़ू में फर्क ये था
मुझे बस वो…
और उसे सारा जमाना चाहिए था।
मेरे इश्क़ से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत,
तेरा ज़िक्र ही कहां था , मेरी दास्तान से पहले।
Zakir Khan Shayari in Hindi | Zakir Khan Quotes in Hindi
गर यकीन ना हों तो बिछड़ कर देख लो
तुम मिलोगे सबसे मगर हमारी ही तलाश में।
इश्क़ किया था
हक से किया था
सिंगल भी रहेंगे तो हक से ।
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी सी फर्माइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफसील से मिलने की ख्वाइश है ।
ये तो परिंदों की मासूमियत है,
वरना दूसरों के घर अब आता जाता कौन हैं।
तुम भी कमाल करते हों ,
उम्मीदें इंसान से लगा कर
शिकवे भगवान से करते हो।
बड़ी कश्मकश में है ये जिंदगी की,
तेरा मिलना मिलना इश्क़ था या फरेब।
दिलों की बात करता है ज़माना,
पर आज भी मोहब्बत
चेहरे से ही शुरू होती हैं।
Zakir Khan Shayari in Hindi | Zakir Khan Quotes in Hindi
वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी
मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी।
माना की तुमको भी इश्क़ का तजुर्बा कम् नहीं,
हमने भी तो बागो में है कई तितलियाँ उड़ाई…
ज़िन्दगी से कुछ ज्यादा नहीं बास इतनी सी फरमाइश है ,
अब तस्वीर से नहीं, तफ्सील से मिलने की ख्वाइश है…
कामयाबी, तेरे लिए हमने खुदको को कुछ यूँ तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया…
यूँ तो भूले है हमे लोग कई पहले भी बोहोत से,
पर तुम जितना उनमे से कभी कोई याद नहीं आता…
तुझे खोने का खौफ जबसे निकला है बाहर,
तुझे पाने की जिद भी टिक न सकी दिल में…
इश्क़ को मासूम रहने दो , नोटबुक के आखरी पन्ने पर,
आप उससे किताबों में डाल के मुश्किल न कीजिये…
रफ़ीक़ों से रक़ीब अच्छे जो जल कर नाम लेते हैं
गुलों से ख़ार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं
कितनी पामाल उमंगों का है मदफ़न मत पूछ
वो तबस्सुम जो हक़ीक़त में फ़ुग़ाँ होता है
मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर उसी अंदाज़ से
Zakir Khan Shayari in Hindi | Zakir Khan Quotes in Hindi
मैं भी हैरान हूँ ऐ ‘दाग़’ कि ये बात है क्या
वादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को
दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा
जा चुकी है बहार चुप हो जा
हम से पूछो न दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
हम ने सुना था की दोस्त वफ़ा करते हैं “फ़राज़”
जब हम ने किया भरोसा तो रिवायत ही बदल गई
अगर आप जाकिर खान शायरी क़यामत, जाकिर खान शायरी इन हिंदी, मैं शून्य पे सवार हूँ, मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत, जाकिर खान पोएट्री, उसे अच्छा नहीं लगता, मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत तथा जाकिर खान कविता के बारे में यहाँ से जान सकते है
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
आशिक़ी हो कि बंदगी ‘फ़ाख़िर’
बे-दिली से तो इब्तिदा न करो
Zakir Khan Shayari in Hindi | Zakir Khan Quotes in Hindi
भूली हुई सदा हूँ मुझे याद कीजिए
तुम से कहीं मिला हूँ मुझे याद कीजिए
कौन जाने कि इक तबस्सुम से
कितने मफ़्हूम-ए-ग़म निकलते हैं
देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है
अब न आएँगे रूठने वाले
दीदा-ए-अश्क-बार चुप हो जा
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
राह में ज़िंदगी खड़ी होगी
दुश्मनों से क्या ग़रज़ दुश्मन हैं वो
दोस्तों को आज़मा कर देखिए
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूँ मई ,
ज़िन्दगी , कितने धीरे चला हूँ मैं…
और मुझे जगाने जो और भी हसीं होकर आते थे ,
उन् ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं….
अब वो आग नहीं रही, न शोलो जैसा दहकता हूँ,
रंग भी सब के जैसा है, सबसे ही तो महेकता हूँ…
एक आरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में,
तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ…
बस का इंतज़ार करते हुए,
मेट्रो में खड़े खड़े
रिक्शा में बैठे हुए
गहरे शुन्य में क्या देखते रहते हो?
गुम्म सा चेहरा लिए क्या सोचते हो?
क्या खोया और क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी?
घर नहीं जा पाए न इस बार भी?
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